निगाह कोई तो तूफ़ाँ में मेहरबान सी है,
हर एक मौज समुंदर की पाएदान सी है।
हर एक शख़्स को गाहक समझ के ख़ुश रखना,
ये ज़िंदगी भी हमारी कोई दुकान सी है।
मैं आसमाँ की तरह मुद्दतों से ठहरा हूँ,
बदन में फिर भी ज़मीं जैसी कुछ थकान सी है।
दुखों का क्या है ये आते हैं तीर की मानिंद,
ख़ुशी हमेशा मिरे वास्ते कमान सी है।
क़दम सँभाल के रखना हसीन राहों पर,
फिसल गए तो फिर आगे बड़ी ढलान सी है।
ज़बान मुँह में हमारे थी जब ग़ुलाम थे हम,
हमारे मुँह में मगर अब तो बस ज़बान सी है।
अब आए दिन ही निकलता है आँसुओं का जुलूस,
हमारी आँख मुसलसल लहूलुहान सी है।

अगली रचना
सफ़र में यूँ तो बलाएँ भी काम करती हैंपिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
