नींद (नज़्म)

ये किस पैकर की रंगीनी सिमट कर दिल में आती है
मिरी बे-कैफ़ तंहाई को यूँ रंगीं बनाती है

ये किस की जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ रुबाब-ए-दिल को छूती है
ये किस के पैरहन की सरसराहट गुनगुनाती है

मिरी आँखों में किस की शोख़ी-ए-लब का तसव्वुर है
कि जिस के कैफ़ से आँखों में मेरी नींद आती है

सुकूत और शांति के हर क़दम पर फूल बरसाती
असीर-ए-काकुल-ए-शब-गूँ बना कर मुस्कुराती है

मिरी आँखों में घुल जाती है वो कैफ़-ए-नज़र बन कर
मुझे क़ौस-ए-क़ुज़ह की छाँव में पहरों सुलाती है

सहर तक वो मुझे चिमटाए रखती है कलेजे से
दबे पाँव किरन ख़ुर्शीद की आ कर जगाती है


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