निकला रवि हुआ प्रकाश,
अँधकार का छुटा साथ।
लिये नए अद्भुत विश्वास,
आज चमकता दिनकर ख़ास।
मंद गति में बहती सरिता,
साथ लिए जीवन की गंभीरता।
कभी उठती, कभी गिर जाती,
जीवन पथ को है दर्शाती।
गहरी निंद्रा से जाग कर,
पेड़-पौधे भी झूम रहे।
नव पल्लव खिले हैं तन पर,
एक अनोखी छतरी है सर पर।
आलसी मानव कुछ कर शर्म,
छोड़ बिस्तर कुछ कर धर्म।
कोस रहा तुझको है भास्कर,
पेड़-पौधे और सरिता ख़ासकर।

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