नवरात्रें में लगते माँ जगरातें (कविता)

हे! जगत-जननी मातें अम्बे कल्याणी,
मनोंकामना पूरी करती हो नारायणी।
शेर की सवारी आप करती महारानी,
आप है गोरी एवं काली ब्रह्मचारिणी।।

हर‌ वर्ष शैलपुत्री से शुरु होते नवरात्रें,
चंद्रघंटा कूष्माण्डा लगातें है जगरातें।
स्कंदमाता, कात्यायनी, ब्रह्मचारिणी,
कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री माते।।

शुभ मुहूर्त के प्रतिरूप स्थापना होता,
हररोज अलग देवी माता पूजा होता।
यह पर्व नौ दिन तक आपका चलता,
सुख-संपन्नता हेतु मनुष्य व्रत करता।।

कभी काल बन दुष्टों का नाश करती,
ख़ुशियाँ संसार को आप अपार देती।
मातें भवानी‌ कभी चंडी तू बन जाती,
अन्नपूर्णा, विद्या सुहाग आशीष देती।।

गुड़ घी शक्कर निर्मित मिठाई बनता,
खीर पूरी हलवा भोग आपकें चढ़ता।
दूध नारियल पंचामृत से पूजन होता,
मालपुवा बनता अगरबत्तियाँ जलता।।


रचनाकार : गणपत लाल उदय
लेखन तिथि : 26 नवम्बर, 2021
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