नवनीत माला (दोहा छंद)

चले गेह नित मातु से, पिता चले परिवार।
गुरु गौरव समाज का, चले देश सरकार।।

कारण सब हैं नव सृजन, चाहे देश समाज।
निर्माणक परिवार का, कुप्त प्रलय आग़ाज़।।

प्रतिमानक संघर्ष के, आवाहक युगधर्म।
मातु-पिता अरु गुरु भूपति, सम्वाहक सत्कर्म।।

सदाचार मानक सदा, मानवीय संस्कार।
उषा काल जीवन प्रभा, आलोकित संसार।।

जीवन हो साफल्य तब, तजे स्वार्थ परमार्थ।
ख़ुशियाँ मुख मुस्कान बन, समझो सुख जन सार्थ।।

जन सेवा प्रभु प्रीत है, राष्ट्र भक्ति प्रभु ध्यान।
सत्य सहज पथ मुक्ति का, अमर सुयश वरदान।।

नित निकुंज कवि काकली, मातु-पिता गुरु गान।
राज काज रत भोर से, राष्ट्र भक्ति मन ध्यान।।


लेखन तिथि : 15 मई, 2020
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