नसीब अपना जला चुके हैं (ग़ज़ल)

नसीब अपना जला चुके हैं, चराग़ कोई बुझा न पाए
ग़मों का साया जो पड़ चुका है, वो अब कभी भी हटा न पाए

उदास आँखों में रौशनी थी, मगर वो कब से मिटी पड़ी है
यहाँ तो दिल की ख़लिश भी जानिब, किसी को अब ये बता न पाए

वो अश्क जो थे लबों पे ठहरे, बहा दिए तेरी याद ने सब
मगर ये तेरा ही हिज्र होगा, कि दर्द दिल से सिला न पाए

तेरी मोहब्बत का ये करिश्मा, कि ज़िन्दगी भी अधूरी लगती
जो हाल पूछा किसी ने जानिब, तो हम हँसे भी, छुपा न पाए


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