नहीं रोया कभी पशु (कविता)

नहीं रोया कभी पशु
उसने
नहीं किसी का विश्वास तोड़ा
नहीं कभी वो झूठ बोला
नहीं किसी को धोखा दिया
नहीं कभी विद्रोह किया
कर दिया
अपना जीवन उसके नाम
दिया जिसने
जल, भोजन
आश्रय धाम।

नहीं रोया कभी वृक्ष
उसने
नहीं किसी से कुछ लिया
नहीं किसी को पीड़ा दी
नहीं किसी का मान हरा
नहीं किसी का धन धरा
कर दिया
जीवन अर्पण उसके नाम
आ गया शरण में
जो छाया के नाम।

नवजात शिशु रोया
उसे पता है
उसे उसके पद से गिरा दिया
उसे आदमी बना दिया।


लेखन तिथि : फ़रवरी, 1995
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