नहीं बात करनी मत कीजै (गीत)

निशा चली है स्वप्न ब्याहने
जलता दीपक मिले चाह में
झूठे मन से झूठे सपनों को मेरे आकार न दीजै
नहीं बात करनी मत कीजै।

बेशक मेरी प्रीत नकारो
प्रणय निमंत्रण तुम स्वीकारो
तुम्हें भुलाने को साकी से और कहेंगे मदिरा दीजै
नहीं बात करनी मत कीजै।

इससे ज़्यादा क्या खोना है
तुमको खोकर क्या पाना है
पत्थर में भी आँसू देखे पर कब निष्ठुर हृदय पसीजै
नहीं बात करनी मत कीजै।


रचनाकार : सुशील कुमार
लेखन तिथि : नवम्बर, 2022
यह पृष्ठ 224 बार देखा गया है
×

अगली रचना

क्या माँग भरने का मुझे अधिकार दोगी?


पिछली रचना

संबल
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें