न शिकवा ना शिकायत लाज़मी है (ग़ज़ल)

न शिकवा ना शिकायत लाज़मी है,
मुहोब्बत बस मुहोब्बत लाज़मी है।

दरख़्तों को मुनासिब सख़्तियाँ भी,
गुलों को तो नज़ाकत लाज़मी है।

क़फ़स गर तोड़ने हैं ज़िन्दगी के,
परिन्दों फिर बग़ावत लाज़मी है।

किताबों से परे भी कुछ लिखा है,
क्यों बच्चों की शरारत लाज़मी है।

दवाओं की तिजारत कर रहे हो,
क्या साँसों की तिजारत लाज़मी है।

वो कहते हैं हमारा वास्ता क्या,
शुक्रिया ये मश्वरत लाज़मी है।


रचनाकार : मनजीत भोला
लेखन तिथि : 13 मई, 2021
यह पृष्ठ 246 बार देखा गया है
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती: 1222 1222 122
×

अगली रचना

चिराग़ों तले ही अँधेरा मिला है


पिछली रचना

कौन कहता है तुझे तू दीपकों के गीत गा
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें