मुझे इक्सीर मेरी आह-ए-सोज़ाँ कर के छोड़ेगी
क़नाअ'त मेरी दर्द-ए-दिल को दरमाँ कर के छोड़ेगी
तहय्या है कि अब या मैं रहूँ या कुफ़्र-ए-कमज़ोरी
'अक़ीदत वर्ना बे-दीनी को ईमाँ कर के छोड़ेगी

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