साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
झेलम, पंजाब
1934
मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता, मगर चराग़ की सूरत जला दिया होता। न रौशनी कोई आती मिरे तआ'क़ुब में, जो अपने-आप को मैं ने बुझा दिया होता। ये दर्द जिस्म के या-रब बहुत शदीद लगे, मुझे सलीब पे दो पल सुला दिया होता। ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा, वगर्ना ज़िंदगी ने तो रुला दिया होता।
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