एक बहुत बड़े दर्पण में
अँधेरा डोल रहा है।
तूफ़ान पी रहा है आसमान।
बाहर बहुत तेज़ धूप है—
गहरी और सुर्ख़ धूप।
तेज़ रोशनी की तहों में सोया है एक फूल :
बंद हो रहे दरवाज़ों, झँझरीदार खिड़कियों के पार
मौसम बेहोश, ...कोहरे के कफ़स में
पंक्षी पर फड़फड़ाते हैं।
कमर से झुके हुए,
हाथों में काली लालटेनें थामे—सबके-सब
काँपते क़दमों से इधर-उधर भाग रहे हैं,
फ़र्श पर बिजलियाँ टूटकर नीली पड़ गई हैं।
सीढ़ियों से उतरकर एक ‘टाइफ़स्’
चाँदनी में ठंडा पड़ गया है।
कोई पापी इस सारी दुर्घटना को
रचने में लीन है।

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