मेरी निजी ज़ुबान है, हिन्दी ही दोस्तों (ग़ज़ल)

मेरी निजी ज़ुबान है, हिन्दी ही दोस्तों,
मेरे लिए महान है, हिन्दी ही दोस्तों।

जो भी लिखूँ वही पढूँ, देखो तो ख़ासियत,
हम सबकी आन-बान है, हिन्दी ही दोस्तों।

अपनो के द्वारा नित्य, प्रताड़ित करी गई,
अब भी लहू-लुहान है, हिन्दी ही दोस्तों।

हिन्दी बिना लगती है, अधूरी सी ज़िन्दगी,
'शमा' के लिए जान है, हिन्दी ही दोस्तों।


रचनाकार : शमा परवीन
लेखन तिथि : नवम्बर, 2021
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अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़ती : 221 2121 1221 212
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