मेरे दुश्मन (कविता)

जब मैं देखूँगा कि
वे बहुत क़रीब आ चुके हैं
और उन्होंने मुझे अभी देखा नहीं है

इससे पहले कि उनकी नज़र
मुझ पर पड़े

मैं अपने को सिकोड़कर
दो-तीन तहों में मोड़कर
या एक गोले में बदलता हुआ
फुर्ती से उनकी
टाँगों के बीच से निकल जाऊँगा।


रचनाकार : असद ज़ैदी
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