साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
इटावा, उत्तर प्रदेश
1971
मेरे दरवाज़े यदि सुबह आई तो मैं अपने दरवाज़े बंद कर लूँगा और कहूँगा कि अब बहुत देर हो चुकी है देर से मिले न्याय की तरह सुबह आएगी मेरे दरवाज़े रोकर लिपट जाएँगे उससे दरवाज़ों के पीछे मैं खड़ा रहूँगा कहीं उसे देखता
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