बैठ लें कुछ देर,
आओ, एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनंत के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिंदु-सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छंद
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप, निर्द्वंद।
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