रीत यहाँ की देख के, मन में खटके बात।
मनुज विवेकी कौन थे, जिसने बाँटी जात।।
पीड़ा जग की देख के, मन में खटके बात।
कौन कर्म है आपके, व्यथा भोग दिन-रात।।
गुड़ से मीठे बोल है, थाम चले है हाथ।
पग-पग मेरे साथ है, देत ग़ैर का साथ।।
बेमतलब है ये हँसी, मन में खटके बात।
पर्तें मुख पर लाख है, दिखते है जज़्बात।।
ऊँचे उसके बोल है, वार्ता करे अकाथ।
आन शीश विपदा खड़ी, जोड़ फिरे जग हाथ।।
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