मकान मना करते हैं (कविता)

मकान मना करते हैं
पेड़ नहीं
नदी नहीं
आसमान नहीं
मकान मना करते हैं क्योंकि
मकान में अंदर है

पेड़ में, नदी में, आसमान में कोई बस नहीं पाया
अभी तक
इसलिए वे मना नहीं करते
मकान मना करते हैं क्योंकि अभी
अपने-आपमें मकान की ईजाद
मकान को करना है

पर मकान ही मिस्त्री हुआ तो वह फिर क्या
मकान होगा और उसके
मना करने से हमें क्या नुक़सान होगा!


रचनाकार : सुदीप बनर्जी
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