मैंने कच्चे घरों को टूटते देखा,
आँसुओं को ज़मीन पर टपकते हुए देखा,
तन्हाइयों से ख़ुद को लड़ते हुए देखा,
लहरों को किनारों से मिलते हुए देख,
काँच के शीशों को,
पत्थरों से टूटते हुए देखा,
मैंने मज़लूमो को,
ज़ालिमों से लड़ते हुए देखा,
रिश्तो को पल भर में बिखरते हुए देखा,
अपनों को जुदा होते हुए देखा,
प्यार को नफ़रत में बदलते हुए देखा,
मोहब्बत को बदनाम होते हुए देखा,
तारों को आसमान से टूटते हुए देखा,
भक्तों को रब से रूठते हुए देखा,
बादलों के पीछे छिपे चाँद को देखा,
मैंने जन्नत को जहान में बदलते देखा,
अपने आप को जलाकर,
दूसरों के लिए जीते हुए लोगों को देखा,
उस काली रात में ख़ुद को डरते हुए देखा,
मैंने जब भी देखा ज़िंदगी को आगे बढ़ते ही देखा।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
