साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3571
भरतपुर, राजस्थान
1940
मैं उस आदमी को जानता हूँ नित्य नई आशा में वह बिछाता है अपनी चादर फटे-चीकट दुशाले को ओढ़कर सर्दी में कहता है अगर ईश्वर कहीं होता तो हमारी मदद करता किस देवता को पूजूँ एक के लिए तो अगरबत्ती नहीं जुटा सका दूसरे के बारे में क्यों सोचूँ सब ठीक हो जाएगा क्योंकि इससे बुरा तो अब क्या होगा
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