बड़ा कठिन है यह कह पाना
कि मैं कौन हूँ?
प्रकृति का अंश मात्र
या ईश्वर का दूत हूँ,
या फिर चलता फिरता
मात्र एक आकार हूँ।
जिसे अदृश्य शक्ति चलाती है,
इस काया पर हमारा
ज़रा भी अधिकार नहीं।
हम अहम में जीते हैं
यह तो जानते तक नहीं
कि हम कौन हैं?
फिर भी गर्व से इतराते हैं
बार-बार दुनिया को बताते हैं
मैं कौन हूँ।
जब हम एक साँस भी
ख़ुद से ले नहीं सकते
एक क़दम चल नहीं सकते
हम आज़ाद नहीं हैं
अनजानी अनदेखी सत्ता के
सदा ही अधीन हैं,
हम कुछ भी नहीं हैं,
तब भी व्याकुल हैं
अकुलाते हैं, भटकते हैं
धरा पर आख़िरी साँस तक
इधर-उधर बेचैन दौड़ते भागते हैं
पर ये नहीं जान पाते
कि मैं कौन हूँ?
या समझ नहीं पाते कि मैं कौन हूँ?
आत्मावलोकन करते नहीं
भ्रम में डूबे
भ्रमित बने रहना चाहते हैं
वास्तव में हम जानना ही नहीं चाहते
कि हम कौन हैं, हम कौन हैं?

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