उस देश के
माथे पर है
लिखा हुआ महाविनाश।
बम-मिसाइलों से
भू-भाग उठा थर्रा।
मृतप्राय हुआ
जमीन का जर्रा-जर्रा।।
समय-जुआरी
बाजियाँ चलने
फैंट रहा है ताश।
बारूदी गंधो की
उड़ती है आँधी।
भूलते नेहरू को
भूल गए गाँधी।।
सुगंधित हवाएँ
मलयानिल से
बह रहीं हों काश।
वसुधा का दिल
छलनी-छलनी दिखता है।
क्या नैतिकता और
क्या अनैतिकता है।।
साँसत में हुई
जान बताओ
किसे कहें शाबाश।

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