भारत में जन्मे हैं ऐसे रत्न अनमोल,
परिवर्तित कर दिया जिन्होंने भूगोल।
अगणित अनुयायी बने थे जिनके,
संतवाणी मानते थे लोग उनके बोल।
सन् अट्ठारह सौ उनसठ था वह साल,
दो अक्टूबर को जन्मा देश का लाल।
पिता करमचंद तथा माता पुतलीबाई,
पुत्र मोहनदास को पाकर हुए निहाल।
पिता ने सबक सांसारिकता समझाया,
माँ ने सत्य व अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
सुसंस्कारों में परवरिश हुई थी गांधी की,
उच्चकोटि के गुणों ने महात्मा बनाया।
मोहनदास करमचँद गांधी थे पत्रकार,
दार्शनिक राजनीतिज्ञ और निबंधकार।
क्रांतिकारी विचारों से हृदय ओतप्रोत,
सशक्त सिपाही थामे संग्राम की पतवार।
यूनिवर्सिटी लंदन जाकर क़ानून पढ़ा,
प्रवास दौरान विदेशी परिवेश को गढ़ा।
माँ को दिए वचनों की ख़ातिर गांधी के,
जीवन में सात्विकता व शाकाहार बढ़ा।
सविनय अवज्ञा आंदोलन था चलाया,
अहिंसा के साथ लड़ना था सिखलाया।
शांति सहजता से अपनी बात मनवाना,
मौन तपस्या अनशन का बल दिखलाया।
भारत स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता,
नमक क़ानून,सत्याग्रह के प्रमुख प्रणेता।
'अंग्रेजों भारत छोड़ो' यह चर्चित नारा,
राष्ट्र प्रगति के लिए सदैव तत्पर उन्नेता।
दक्षिण अफ्रीका में था बड़ा ही भेदभाव,
भारतीयों के साथ होता था बड़ा दुराव।
गांधी ने इसके विरुद्ध थी आवाज उठाई,
स्वयं बहुत झेलना पड़ा इसका दुष्प्रभाव।
सात वर्षों से अधिक चला था यह संघर्ष,
बड़े उतार-चढ़ाव के बाद आया निष्कर्ष।
भेदभाव नीति मिटाने में महती भूमिका,
परिणामस्वरूप ख़ुद भी दंड भोगे सहर्ष।
विद्वेषहीन प्रतिरोध तकनीक अपनाई,
भारतवर्ष को पूर्ण स्वतंत्रता दिलवाई।
अपने स्वतंत्र भारत का सुख ले न पाए,
विक्षिप्त नाथूराम गोडसे से गोली खाई।
'हे राम हे राम' यही अंतिम शब्द थे उनके,
प्राण पखेरू हो रहे जब महात्मा गांधी के।
उस रोज शोक में डूबा था भूमंडल सारा,
स्तब्ध रह गया था संसार समाचार सुनके।।

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