वह मातृभूमि के अमर लाल,
भारत माँ के सच्चे सपूत।
आज़ाद चन्द्रशेखर महान,
युग पुरुष कहूँ या देवदूत।
भारत माता भी गर्वित हैं,
जनकर उन जैसा वीर पूत।
अल्फ्रेड पार्क में चुका दिया,
ऋण मातृभूमि का सहित सूत।
भारत माता के मस्तक पर,
निज रक्त तिलक से कर पूजा।
जग रानी सीताराम पुत्र,
तुम सा न कोई जग में दूजा।
स्वतन्त्रता के दीवानों ने,
इंक़लाब जब बोला था।
नवल क्रान्ति की ज्वाला का,
तब हर सेनानी शोला था।
नाकों चने चबाया अरि दल,
त्राहि-त्राहि तब बोला था।
नाक रगड़ कर भागे सारे,
जिस जिस ने विष घोला था।
दासत्व तम को नष्ट करने,
था धरणि आया बाँकुरा।
शुचि भाबरा में जनम ले,
पावन करी अम्बर धरा।
शत्रु की हुँकार सुन कर,
जो न था बिल्कुल डरा।
बलिदान से उनके रँगा है,
ये भारती आँचल हरा।
उनको तो अमरत्व मिला,
पर आयु नहीं लम्बी पाई।
युग-युग तक दुनिया याद करे,
चहुँओर कीर्ति जग में छाई।
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