मेरे हृदय-निकुंज की मधुमालती!
किरण-कन तन पर गिराती,
शारदीया चंदिरा-सी;
कौन है, कर धन्य जो
मधुभार मुझ पर डालती?
मेरे हृदय-निकुंज की मधुमालती!
आ रही मेरे हृदय में;
ज्योति-सी, सूने निलय में!
कौन है, धर चरण जो—
स्मृति-दीप उर में बालती?
मेरे हृदय-निकुंज की मधुमालती!
वह मुझे उर से लगाती,
सुप्त पुलकों को जगाती;
कौन है, सुख मूर्च्छना जो—
सलज सहज सँभालती?
मेरे हृदय निकुँज की मधुमालती!
प्रतिपदा की शशिकला वह,
आ गई निस्सीम में बह!
कौन है, भव शून्य में जो—
नियति-प्रतिमा ढालती?
मेरे हृदय-निकुंज की मधुमालती!
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