हे! माँ फिर से वापस आ जाओ।
लोरी मधुरिम कंठ सुना जाओ।।
मात! दंतहीन, बलहीन हूँ मैं,
अब अस्सी बरस का दीन हूँ मैं।
बाँहें पकड़कर माँ दे सहारा,
आज भी हूँ मैं तेरा दुलारा।
परियों की कथा, किन्तु आ जाओ।
लोरी मधुरिम कंठ सुना जाओ।।
लगा तेल उबटन, मालिश कर दे,
हाथ रख सिर पर आशीष भर दे।
खिला दे दूध भात का निवाला,
उतार नज़रें कर टीका काला।
माँ! गहरी नींद में सुला जाओ।
लोरी मधुरिम कंठ सुना जाओ।।
भूख है पर कोई नही सुनता,
अपने-अपने में क्यों है रमता।
स्वार्थ के साया में घूँटन है,
धुँधली तस्वीर में बस रुदन है।
माँ! अमर तथ्य घूँट पिला जाओ।
लोरी मधुरिम कंठ सुना जाओ।।

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