माँ को (कविता)

धूप में सुखाने का चलन है
माँ को हमने कभी धूप में तो नहीं सुखाया
फिर इतना क्यों सूख गई है माँ!
माँ सूखती रही और हमें पता ही नहीं चला ठीक-ठीक
रोग-व्याधि खाते रहे माँ का शरीर
चिढ़-चिढ़ कर माँ सूखती रही
माँ मृत्यु से चिढ़ती है बहुत
बहुत खाए हैं मृत्यु ने
माँ के बच्चे
मृत्यु ने माँ को जीवन भर दुख दिया है
रोज़-रोज़ के डर के साथ
इसीलिए माँ केवल
जर्जर-सूखा शरीर ही देकर जाना चाहती है मृत्यु को
माँ मृत्यु से चिढ़ती है बहुत


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