माँ के नाम एक दिन (कविता)

बहुत जटिल और कुटिल है विश्व समाज
पहले तो स्त्री को अकारण प्रताड़ित अपमानित करता है क
और फिर मनाता है मातृ दिवस

कहाँ हो माँ?
सशरीर उड़ गईं?
और हम न जाने तुम्हारे जैसी किन स्त्रियों को
सम्मानित करने में लगे हैं
क्या वे तुम्हारी जगह ले सकती हैं?
इस कर्मकांड के बावजूद हमारे हृदय में तुम्हारी छवि के लिए
एक सांसरिक चिंता है कि तुम्हारे जैसी सभी माँएँ
हमारे पक्ष में रहें
वे अपनी संतानों को सौंपे निर्भय निश्चिंत होकर
राजपाठ और अर्जित करने दें अपार धन वैभव
तुम्हारी आँखों ने आज की तरह
हम पुरुषों को कभी इतना दयावान और सहृदय नहीं देखा होगा

क्या तुम देख नहीं रही हो स्त्रियों का तेज़ गति से बढ़ना
जंगल के रास्तों पर उनके हाथों में बंदूक़ें थमी हैं
और वे तथाकथित देवताओं का सामना करने को तैयार हैं
वे लहलहाते खेतों में खड़ी अपनी संतानों को दूध पिला रही हैं
आसमान अब बहुत कुछ साफ़ है

माँ, तुम उन्हें अवश्य देख सकती हो


रचनाकार : ऋतुराज
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