हिंदी है वो ममता की छाँव,
जो हर दिल में बसती है,
आँगन की वो मीठी बोली,
जो होठों पर सजती है।
गंगा सी निर्मल, सरल,
हर पग में अपनापन,
संस्कृति की ये बूँदें हैं,
जिनसे सींचा है बचपन।
ताजमहल की नक़्क़ाशी में,
या गीतों की सुरमाई धुन,
हर शब्द में बसी है हिंदी,
हर दिल से कहती सुन।
रोटी सी सरल है ये,
माटी सी इसमें ख़ुशबू है,
माँ की लोरी जैसी है,
दिल को सुकून की धुन है।
इसको जब भी कोई भूले,
जड़ें हिल सी जाती हैं,
हिंदी है आत्मा भारत की,
इससे ही पहचानें जाती हैं।
आओ फिर से गर्व करें,
इस अमृतमयी भाषा पर,
हिंदी दिवस का ये पर्व,
समर्पण हो इस भाषा पर।
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