कुछ पुरानी यादें (गीत)

तेरी आँखो में चाहत के,
चिन्ह वो अपने देखें हैं।
अपनी हर ख़ुशी में,
मुस्कान तुम्हारी पाई है।
ग़मों की परछाई में,
प्यार तुम्हारा छलका है।
ख़्वाबों की शबनम ने,
चाहत की प्यास बुझाई है।

जुदाई की नुकीली लहरें चुभती हैं,
स्मृतियों की आँखो में कोर समाती है।
पाने की हृदय में आभा खिलती है,
वह यादें बनकर मचल-मचल बहकाती है।

मस्तिष्क में छा जाती मीठी-मीठी सी यादें,
गुज़री पल-पल की बातें हमें सताती है।
आँखो में तेरा बिम्ब उभरता आता है,
हृदय सिंधु में सौ सौ तरंग जगाती है।

वह थे प्यारे पल निगाहें,
एक दूजे को ढूँढ़ा करती थी।
कल्पना के सागर में थे डूबे,
आँखो में नींद न होती थी।

उस क्षण प्रेमविपिन अपना,
खिला-खिला सा रहता था।
जीवन में फूलों की ख़ुशबू,
उन्मत्त हो महका करती थी।

बस, ख़ुशबू वही पाने की,
अभिलाषा बनी हुई है।
आँखो में आकर आँसू,
इस आस में रुकी हुई है।

कि, जीवन के दुर्धर पथ पर,
खोए हुए भी मिल जाते हैं।
जीवन है तो नक़मी मिलन होगा ही,
कट जाती ग़म की काली स्याह रातें हैं।


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 24 मई, 2013
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