कुछ बादल कुछ चाँद से प्यारे प्यारे लोग (ग़ज़ल)

कुछ बादल कुछ चाँद से प्यारे प्यारे लोग
डूब गए जितने थे आँख के तारे लोग

कुछ पाने कुछ खो देने का धोका है
शहर में जो फिरते हैं मारे मारे लोग

शहर-ए-बदन बस रैन-बसेरा जैसा है
मंज़िल पर कब रुकते हैं बंजारे लोग

रोज़ तमाशा मेरे डूबते रहने का
देख रहे हैं बैठे ख़्वाब किनारे लोग


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