साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बिहार
1981
कुछ बादल कुछ चाँद से प्यारे प्यारे लोग डूब गए जितने थे आँख के तारे लोग कुछ पाने कुछ खो देने का धोका है शहर में जो फिरते हैं मारे मारे लोग शहर-ए-बदन बस रैन-बसेरा जैसा है मंज़िल पर कब रुकते हैं बंजारे लोग रोज़ तमाशा मेरे डूबते रहने का देख रहे हैं बैठे ख़्वाब किनारे लोग
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें