ख़ुद से ना दूर करो (कविता)

रूठना हक़ तुम्हारा,
मानना फ़र्ज़ हमारा।
माफ़ कर दो अबकी,
बिन तुम्हारे मैं हारा।।

तुम जितनी रुठोगी,
हम उतना मनाएँगे।
हो जितने भी झगड़े,
तुम्हें भुला ना पाएँगे।

सुनो तुम मुझे भी ज़रा,
तुम्हारे बिना मैं अधूरा।
मैं क़लम तुम काग़ज़,
मिलकर ही होंगे पूरा।

रूठो तुम, हम मनाएँगे,
प्यार से तुम्हे सताएँगे।।
मत जाओ छोड़ के दूर,
बिना तुम्हारे रह न पाएँगे।।

ग़लती हुई, दिल दुखाया,
ग़ुस्से में आँखें दिखा लो।।
कह के दो चार बाते मुझे,
फिर से तुम गले लगा लो।

प्लीज, अब मान भी जाओ,
टीचर बनके मुर्गा बनाओ।
रूठ कर, ग़ुस्से में बात करो,
पर ख़ुद से ना मुझे दूर करो।।


रचनाकार : अंकुर सिंह
लेखन तिथि : 23 नवम्बर, 2021
यह पृष्ठ 278 बार देखा गया है
×

अगली रचना

तिरंगा


पिछली रचना

रूठे यार को मनाऊँ कैसे?
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें