ख़तरनाक (कविता)

मैं जिनके साथ पचास सालों से हूँ
यह क्या हुआ एकाएक कि
उनका प्यार घृणा में बदल गया
और उनका धर्म-युद्ध में

उनकी थाली में हरदम बना रहने वाला
निवाला ज़हर हो गया
उनकी भाषा में नमी की जगह जलते अंगारे हैं

उनसे न्याय की उम्मीद सिरे से ख़त्म हो गई
उनकी आँखों में हिक़ारत का भाव गहरा हो गया

उनकी पूजा में फिर से मनुष्य की बलि शामिल हो गई
कोई नहीं जान पाएगा
कि यह होना कितना ख़तरनाक हो गया।


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