ख़ता गया जो निशाना कमाँ बदलता है (ग़ज़ल)

ख़ता गया जो निशाना कमाँ बदलता है
नहीं तमीज़-ए-रिहाइश मकाँ बदलता है

कहानी ये थी कि सब साथ मिल के रहते हैं
फिर इस के ब'अद अचानक समाँ बदलता है

हम उस की राह में आँखें बिछा के देख चुके
मगर वो जान का दुश्मन कहाँ बदलता है

अमीर-ए-शहर तनव्वो-पसंद है 'ख़ालिद'
लिबास-ए-नौ के मुताबिक़ ज़बाँ बदलता है


रचनाकार : ख़ालिद महमूद
  • विषय : -  
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