साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बेंगलुरु, कर्नाटक
1998
मुझे कविता नहीं आती वह तो बस कई दफ़े रोटी सेंकते नज़र अटक जाती है दहकते तवे की ओर और हाथ छू जाता है उससे तब उफन पड़ती है— कविता।
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें