साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मधुबनी, बिहार
2004
अनंत नभ के नीचे, अपनी गति से चलता है, निरंतर असफल प्रयास से जो नहीं ठहरता है। जो अश्रु नहीं, लहु पीता है, वही जीता है। जो नभ को कण समझता है, ग्रीष्म में जो ठिठुरते हैं, एक चोट में राह बदलता, भूमि पर बिखरता है। अगले क़दम से डरता है, वही मरता है।
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