कौमी एकता (कविता)

आपस मे अब युद्ध न करना,
ऐ! भारत माता के लालों।
बैरी देश हँसेंगे तुम पर,
वो सोचेंगे लाभ उठा लो।
आपस के मतभेद मिटा दो,
मुठ्ठी सा बंध जाओ तुम।
भाईचारा सदा निभाना,
भारत माँ के रखवालों।

भारतवर्ष के रहने वालों,
आपस में तुम प्यार करो।
हम सब बच्चे भारत माँ के,
इस सच को स्वीकार करो।
माँ का दिल रो उठता है,
जब उसके बच्चे लड़ते हैं।
जनम भूमि का दिल न दुखाना,
दिल से ये इक़रार करो।

हम सब अगर झगड़ें कभी,
पर वक्त पर तो एक हैं।
है अजब सी एकता,
हम सब दिलों के नेक हैं।
लोहड़ी क्रिसमस ईद दिवाली,
मिलकर सभी मना लेते।
हम सब मन से एक हैं यारों,
भाषा भले अनेक हैं।

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई,
भारत माँ के सब बच्चे।
भारत माँ ये कभी न चाहे,
रहें अकल के हम कच्चे।
अपनेपन की भाषा बोलो,
प्रेमभाव बर्ताव करो।
एक कुटुंब देश है सारा,
बनो नेक इंसा सच्चे।


लेखन तिथि : 18 नवम्बर, 2021
यह पृष्ठ 136 बार देखा गया है
×

अगली रचना

गंगा मइया


पिछली रचना

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें