काश! ऐसा कोई जतन हो जाए (कविता)

काश! ऐसा कोई जतन हो जाए,
जाति-धर्म का पतन हो जाए।
फिर ना रहे आपस में भेदभाव,
सारे जहाँ का एक वतन हो जाए।
सभी में हो अपनेपन का भाव,
अपना-पराया सब ख़तम हो जाए।
जाना सभी को है एक दिन यहाँ,
लालच में न ईमान ख़तम हो जाए।
सबक यही है ज़िंदगी का बन्दे,
सबका भला तेरा करम हो जाए।
ये दौलत, बंग्ला, गाड़ी सब मेरे हैं,
तुझको न ये झूठा भ्रम हो जाए।
नंगा आया था, नंगा ही जाएगा,
मानवता ही तेरा धरम हो जाए।
काश! ऐसा कोई जतन हो जाए,
जाति-धर्म का पतन हो जाए।


लेखन तिथि : 13 नवम्बर, 2020
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