जलने दो जीवन को इस पर
करुणा की छाया न करो!
इन असंख्य-घावों पर नाहक
अमृत बरसाया न करो!
फिर-फिर उस स्वप्निल-अतीत की
गाथाएँ गाया न करो!
बार-बार वेदना-भरी
स्मृतियों को उकसाया न करो!
जीवन के चिर-अँधकार में
दीपक तुम न जलाओ!
मेरे उर के घोर प्रलय को
सोने दो, न जगाओ!
इच्छाओं की दग्ध-चिता पर
क्यों हो जल बरसाते?
सोई हुई व्यथा को छूकर
क्यों हो व्यर्थ जगाते?
संवेदना प्रकट करते हो
चाह नहीं, रहने दो!
ठुकराए को हाथ बढ़ाकर
क्यों हो अब अपनाते?
जीवन की विषाद-ज्वाला का
पूछ रहे परिमाण?
निठुर! इन्हीं राखों में तो मैं
खोज रहा निर्वाण!

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
