कल तलक (मुक्तक)

1
कल तलक तो हम भी होते थे सुघड़,
क्या हुआ जो आज हैं ऊबड़-खाबड़।
जो ख़ामियाँ हममें नज़र आतीं हैं तुम्हें,
ये, वक्त ने की है हमारे साथ गड़बड़।

2
कल तलक हम थे किसी से भी न कम,
हमने भी फहराया बहुत अपना परचम।
किस लिए ठहरा रहे आज यूँ कमतर हमें,
हम तुम्हारे सामने हैं, क्या किसी से कम?

3
कल तलक हम जानते थे गीत गाना,
था हमारा शौक़ भी सुनना सुनाना।
वक्त ने हमसे कहा अब मौन हो जाओ,
हमने तो बस वक्त का कहना है माना।

4
कल तलक जो लोग हमको जानते थे,
कल तलक वो लोग हमको मानते थे।
हमको वो यारों का यार कहा करते थे,
यार वो हमारी नब्ज़ को पहचानते थे।

5
कल तलक हम भी थे चमन वाले,
कल तलक हम भी थे रतन वाले।
क्या हुआ आज हैं क़फ़स में हम,
कल तलक हम भी थे गगन वाले।


  • विषय :
लेखन तिथि : 11 अगस्त, 2022
यह पृष्ठ 224 बार देखा गया है
×
आगे रचना नहीं है


पिछली रचना

सीमा के पहरुओं


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें