कहाँ तक जाओगे? (कविता)

कहाँ तक जाओगे?
जाने को क्या है, आगे जो पहाड़ देखते हो
वहाँ तक भी जा सकते हो
फिर उसके आगे भी पहाड़ लगता है
चाहो तो वहाँ तक भी पहाड़ है
फिर एक दर्रा है
फिर सरोवर है
फिर उसके आगे विदेश है
फिर पठार है
फिर विदेश का भी विदेश है
कहाँ तक बताऊँ।
अपनी कहो,
कहाँ तक जाओगे?

मेरी क्या पूछते हो सा’ब।
मैं तो यहीं राम में झोंपड़ी बनाकर
रहता हूँ।
सिगड़ी जलाकर चाय बनाता हूँ
पीता हूँ पिलाता हूँ
गुज़र करता हूँ।
कहीं नहीं जाता।

पहले गया बहुत दूर-दूर तक
फिर लौट लौट कर अपनी झोपड़ी
में ही आना हुआ
न गया होता तो कैसे बतलाता?
कि पहाड़ है, विदेश है, विदेश का भी विदेश है—
सब देखा है
लेकिन लौटकर अपनी झोंपड़ी में
आना ही हुआ।

मेरी छोड़ो।
अपनी कहो कहाँ तक जाओगे?

कैमरे से फ़ोटो लेना चाहते हो
तो बहुत दूर क्यों जाओगे?
उस पहाड़ से मुड़कर
आगे तस्वीरें खींच लेना
बहुत तस्वीरें मिलेंगी
और घर लौटकर दिखाने को भी रहेगा
कि मैं कितना पहाड़ पार कर
आया
अख़बार में लिखोगे?
ज़रूर लिखना।
बहुत लोग इतना ही पहाड़
जानते हैं।


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