कच्चा प्रेम (कविता)

आम पृथ्वी के तन
और सूरज के मन से बना फल है
पृथ्वी आम में मीठे रस भरती है
और सूरज उसे पकाता है
आम ऐसा मीठा फल है
पककर जिसके टपकने में भी मिठास होती है
सुनकर जिसका टपकना
दौड़ पड़ता है हमारा बचपन
सिंदुरिया, सुआपंखी, शंखा, मालदह,
चपटिया, मिठौंहा आदि होते हैं
हमारे जनपदों में आमों के नाम
पके आम खाते हुए
पेड़ में लदे आम देखकर ललचाए राहगीरों का मन भी
चख लेते हैं हम
गिलहरी-खाए आम में
चली आती है गिलहरी के दाँत की शक्कर
सुग्गे आम को इतनी कलाकारी से खाते हैं कि
याद कर उसे पेड़ के मन में
दौड़ती रहती है हरियाली
अमराइयों में कोयल के गीत की मिठास
पकाती रहती है आम
इसीलिए आम खाते हुए बचाकर चलना होता है हमें
कि कोयल की गीत में गड़ नहीं जाएँ कहीं
हमारे दाँत
वसंत-मन लिए
आम सूरज के मन का फल है
पके मीठे आम में
जो थोड़ा-सा खट्टापन है
वही बिरहिन का कच्चा प्रेम है
आम की छाँव में प्रतीक्षारत है बिरहिन
दूरदेश से उसके साथी की
अभी तक कोई ख़बर नहीं आई है


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