साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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नई दिल्ली, दिल्ली
1976
जो न समझते पाक मुहब्बत, उन ख़ातिर है ख़ाक मुहब्बत। जिन्हे तजुर्बा नहीं इश्क़ का, उनको रहती ताक मुहब्बत। नफ़ा खोजते हैं जो इसमें, उनकी है चालाक मुहब्बत। जो ख़ुद में उलझे रहते हैं, होते देख अवाक मुहब्बत। करते हैं जो सच्चे दिल से, जग में उनकी धाक मुहब्बत। जिसने इसको समझा 'अंचल', करते वो बेबाक मुहब्बत।
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