एक प्रणय के संबोधन में
हमने कितने नाम दिए।
जितनी बार पढ़ा है तुमको
उतने ही अनुवाद किए।
डूबा रहता हूँ यादों में
दृग से निर्झर नीर बहे।
क़लम हमारी साँस तोड़ती
अक्षर-अक्षर सिसक रहे।
उमड़ रही है विरह-वेदना
बिखर गए उर भाव प्रिये।
जितनी बार पढ़ा है तुमको
उतने ही अनुवाद किए।
नयनों में छवि बसी तुम्हारी
याद मुझे वो भोलापन।
विगत वर्ष से तरस रहे हम
उन हाथों की एक छुअन।
भटक रहा हूँ बंजारों सा
प्रेमिल हृदय उदास लिए।
जितनी बार पढ़ा है तुमको
उतने ही अनुवाद किए।
मत पूछो! यादों में तेरी
दिल पर कितने घाव लगे।
एकाकीपन के जीवन में
हम तो अनगिन रात जगे।
प्रेम-पिपासा में हमने बस
नफ़रत के हैं घूँट पिए।
जितनी बार पढ़ा है तुमको
उतने ही अनुवाद किए।
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