जीवनदायिनी (कविता)

सबसे सुंदर सबसे प्यारा,
प्रीत मीत संसार।
घर-घर में होती है नारी,
निश्छल पालनहार।।

सुबह सबेरे नित्य जागकर,
करती झाड़ू बुखारी।
नास्ता, वस्ता, तौलिया,
सब कुछ ज़िम्मेदारी।।

टिफिन-लंच, कपड़े,बर्तन,
प्रतिदिन की बारी।
साँझ ढले से करती फिर से,
भोजन की तैयारी।।

रसोई समेटकर रात कोआती,
फिर सोने की बारी।
बुज़ुर्ग, पतिदेव, बच्चों की,
चौतरफ़ा ज़िम्मेदारी।।

भारत परिवार में नारी रखती,
अभिनव विशेष स्थान।
घर-घर का आधार स्तंभ,
गाड़ी में धुरा समान।

नारी जीवनदायिनी पोषक,
ख़ुशियों का आधार।
बच्चों की गोद ममतामयी,
पति पहलू सिमटा संसार।।

जिस घर में पूज्यंते नारी,
माँ लक्ष्मी करें निवास।
श्रीहरि विष्णु शेषनाग छैया,
सुखमय बने आवास।।

माँ गौरा, हंसवाहिनी, अन्नपूर्णा
सदा शीश कृपा हाथ।
परमपिता ब्रह्मा, देवाधि
आशीष क्षितिज कैलाश।।


लेखन तिथि : 16 दिसम्बर, 2021 (रात्रि 10:30 से 11:30 तक)
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