जीवन में किताबें (कविता)

कुछ लोग
जीवन भर
कुछ किताबों को
इतना बाँचते हैं
इतना बाँचते हैं
कि उनमें लिखे
कुछ ज़िंदा शब्दों का भी
दम निकल जाता है।

कुछ और लोग हैं
जो कुछ किताबों को
इतना पढ़ते हैं
इतना पढ़ते हैं
कि उनमें लिखे शब्द
उनके भीतर
इस तरह घुस जाते हैं
वे ख़ुद मर जाते हैं।

कुछ लोग और भी हैं
किताबों को
ऐसे पढ़ते हैं
जैसे किसान अपने बीजों को
बोने से पहले
भिगो लेते हैं पानी में
उन्हें ही डालते हैं खेतों में
जो बैठ जाते हैं तले में
तैरने वालों को
खिला देते हैं जानवरों को
उनके जीवन में किताबें
फ़सलों की तरह लहलहाती रहती हैं।


यह पृष्ठ 275 बार देखा गया है
×

अगली रचना

पहाड़ टूटना


पिछली रचना

दाल
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें