जवानी का झंडा (कविता)

घटा फाड़कर जगमगाता हुआ
आ गया देख, ज्वाला का बान;
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!

सहम करके चुप हो गए थे समुंदर
अभी सुनके तेरी दहाड़,
ज़मीं हिल रही थी, जहाँ हिल रहा था,
अभी हिल रहे थे पहाड़;

अभी क्या हुआ? किसके जादू ने आकार के
शेरों की सी दी ज़बान?
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!

खड़ा हो कि पच्छिम के कुचले हुए लोग
उठने लगे ले मशाल,
खड़ा हो कि पूरब की छाती से भी
फूटने को है ज्वाला कराल!

खड़ा हो कि फिर फूँक विष की लगा
धुर्जटी ने बजाया विषान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!

गरजकर बता सबको, मारे किसी के
मरेगा नहीं हिंद-देश,
लहू की नदी तैरकर आ गया है,
कहीं से कहीं हिंद-देश!

लड़ाई के मैदान में चल रहे लेके
हम उसका उड़ता निशान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!

आह! जगमगाने लगी रात की
माँग में रौशनी की लकीर,
अहा! फूल हँसने लगे, सामने देख,
उड़ने लगा वह अबीर!

अहा! यह उषा होके उड़ता चला
आ रहा देवता का विमान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!


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यूनान के युद्धोत्तर विद्रोह के समय रचित
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