जन्मभूमि (कविता)

जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी!

जिसका गौरव भाल हिमाचल,
स्वर्ण धरा हँसती चिर श्यामल,
ज्योति ग्रथित गंगा यमुना जल,
वह जन जन के हृदय में बसी!

जिसे राम लक्ष्मण औ' सीता
बना गए पद धूलि पुनीता,
जहाँ कृष्ण ने गाई गीता
बजा अमर प्राणों में वंशी!

सीता सावित्री सी नारी
उतरीं आभा देही प्यारी,
शिला बनी तापस सकुमारी
जड़ता बनी चेतना सरसी!

शांति निकेतन जहाँ तपोवन
ध्यानावस्थित हो ऋषि मुनि गण
चिद् नभ में करते थे विचरण,
जहाँ सत्य की किरणें बरसीं!

आज युद्ध जर्जर जग जीवन,
पुनः करेगी मंत्रोच्चारण
वह वसुधैव बना कुटुंबकम्,
उसके मुख पर ज्योति नव लसी!

जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि है गरीयसी!


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