हरी भरी
ज़रख़ेज़ भूमी,
लीलतीं सड़कें हैं।
हाइवा-डंपर
जो हाईवे
में चलते।
धुँए से
गाँव के
परिवेश को छलते।
साँप रेंगता-
सूखे पत्ते
रह रह खड़के हैं।
गश्त शहर के
चप्पे चप्पे
में जारी।
शांति भंग
होने की
पूरी तैयारी।
थानेदार
सिपाही पर ही
जमकर भड़के हैं।
कंक्रीट के-
गाँव में अब
उगते जंगल।
होता-
गाँव शहर की
भाषा में दंगल।
और देह के
अंग अंग
जाने क्यों फड़के हैं।

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