जल ओक में भरने लगी (ग़ज़ल)

जल ओक में भरने लगी,
वह आचमन करने लगी।

जब भी हवा आँधी बनी,
ये सृष्टि भी डरने लगी।

होता अगर है कोसना,
मुझमें दुआ झरने लगी।

खाली जगह है देखिए,
अब फूल से भरने लगी।

जब-जब मिली शुभकामना,
है पीर को हरने लगी।


  • विषय :
लेखन तिथि : जनवरी, 2022
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अरकान : मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
तक़ती : 2212 2212
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